शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

दोहों की दुनिया संजीव 'सलिल'

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दोहों की दुनिया

संजीव 'सलिल'

देह नेह का गेह हो, तब हो आत्मानंद.
स्व अर्पित कर सर्व-हित, पा ले परमानंद..

मन से मन जोड़ा नहीं, तन से तन को जोड़.
बना लिया रिश्ता 'सलिल', पल में बैठे तोड़..

अनुबंधों को कह रहा, नाहक जग सम्बन्ध.
नेह-प्रेम की यदि नहीं, इनमें व्यापी गंध..

निज-हित हेतु दिखा रहे, जो जन झूठा प्यार.
हित न साधा तो कर रहे, वे पल में तकरार..

अपनापन सपना हुआ, नपना मतलब-स्वार्थ.
जपना माला प्यार की, जप ना- कर परमार्थ..

भला-बुरा कब कहाँ क्या, कौन सका पहचान?
जब जैसा जो घट रहा, वह हरि-इच्छा जान.

बहता पानी निर्मला, ठहरा तो हो गंद.
चेतन चेत न क्यों रहा?, 'सलिल' हुआ मति-मंद..

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शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009

शिवानन्द वाणी:

शिवानन्द वाणी:


छल कपट की भावना प्रबल होने पर
निष्कपटता और उसके मूल्यवान लाभों की सोचो।

अंतर्मन में जब उठें, कपट याकि छल भाव.
'सलिल' सोच निष्कपटता, के गुण और प्रभाव..

IF THERE IS HYPOCRISY, THINK OF
FRANKNESS AND ITS INVALUABLE ADVANTAGES.

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सेवा कर हर जीव की, सभी उसी की सृष्टि.
सच्ची प्रभु पूजा 'सलिल', सब में सम अनुरक्ति..

SERVE ALL CREATURES OF GOD. THE SERVICE OF SERVANTS OF GOD IS HIS REAL WORSHIP.

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शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

चिन्तन सलिला: शिवानन्द वाणी 'सलिल'

शिवानन्द वाणी

IF THERE IS HARSHNESS OF HEART,
THINK OF MERCY

यदि मन कठोर हो तो,
दया की भावना का विचार करो।

mn kathor yadi to karo, 'salil' daya ka daan.

bhiksharjan ke dwar par, le jata abhimaan..


मन कठोर यदि तो करो, 'सलिल' दया का दान.
भिक्षार्जन के द्वार पर, ले जाता अभिमान..


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SERVE ALL CREATURES OF GOD. THE SERVICE OF SERVANTS OF GOD IS HIS REAL WORSHIP